Aalhadini

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खूनी तांडव 2

 


फ्लॉवर वास की आवाज़ से सभी चौक गये। सबको खतरे का अंदेशा हुआ। सबको अपनी योजनाओं पर पानी फिरता नज़र आया। इतनी मेहनत करने के बाद इस तरह सबकुछ हाथ से  निकलने देने के लिए कोई भी तैयार नहीं था।सभी ऊपर की तरफ़ दौड़े। 
ये स्नेहा के लिये ये मुसीबत बढ़ाने वाला था। अचानक उसके दिमाग ने काम करना शुरू कर दिया। आसपास कुछ ऐसा ढूंढने लगी जिससे थोड़ी देर के लिए ही सही उसपर से ध्यान हट जाये ताकि सब जान सके। पर अभी तक कुछ मिला ही नही था। उनलोगों के सीढियों तक आने की आवाज़ आई।
तभी वही श्मशान वाली रहस्यमय आवाज गूंजी, "बेवकूफ लड़की…!!!" आवाज डरावने स्वर में बोली।
"तुझे यहाँ ऐसे आने के लिए किसने कहा था? अपने ही घर में कोई चोरों की तरह आता है क्या? उन लोगों ने देख लिया तो पड़ी होगी किसी मुर्दाघर में लावारिस की तरह।" आवाज ने फिर कहा।
"हे महाकाल…!! किस मूर्ख लड़की की मदद करने चला था। जिसे स्वयं ही संकट को न्यौता देने का शौक है।"
"अब जल्दी कर तेरे सामने एक चित्र टंगा है, जल्दी से अपनी हथेली उस पर रख दे। देर की तो मैं भी कुछ नहीं कर पाउंगा।" आवाज ने कहा।
"पर…!!!" स्नेहा ने पूछा।
"व्यर्थ की बातों में समय नष्ट मत करो।सभी प्रश्नों के उत्तर शाम को मिल जाएंगे। अभी जितना कहा है उतना करो जल्दी।" आवाज ने आदेश दिया।
स्नेहा भाग कर पेंटिंग के पास गई। वो एक प्राकृतिक झरने की पेंटिंग थी। जैसे ही स्नेहा ने पेंटिंग को छुआ। वो खुद अब पेंटिंग का एक हिस्सा थी। अचंभित थी कि कैसे हुआ? स्नेहा सब कुछ देख और सुन पा रही थी वही से। 
तभी सब एक एक कर के ऊपर पहुंचे। सब  हैरान थे कि जब कोई है ही नहीं यहाँ तो फ्लावर वास कैसे गिरा?
"राहुल(चाचा का बेटा) तुम छत पर देखो।  अनुज (बुआ का बेटा)तुम स्टोर में… अरुणा(चाची) तुम कमरों में देखो और जीजी(गीता) बालकनी में ढूंढो। मैं यहाँ हॉल में देखता हूँ।" अखिलेश जी (चाचा)ने कहा। 
सब ने हाँ कहा और ढूंढने चल दिये। 
जितना बड़ा घर था उतनी ही बड़ी छत भी थी, बहुत ही खूबसूरत। छत पर टेरेस गार्डन बना हुआ था। खूबसूरत झूला, बैठने के लिए टेबल कुर्सियां रखी थी। छत के किनारे किनारे सुंदर फूलों के गमले रखे थे। बहुत तरह के रंग-बिरंगे फूलों से पूरी छत सुंदर बगीचा दिखाई दे रही थी। एक तरफ सुंदर  स्विमिंग पूल बना हुआ था। जिसमें आर्टिफिशियल कमल के फूल तैर रहे थे और कुछ बत्तख भी तैर रही थी। राहुल छत पर पहुंचा... उसने गमलों के आसपास और छत से नीचे  झांक कर भी देखा कोई नहीं था वहां। फिर वह छत के दूसरी तरफ एक छोटी झोपड़ी बनी थी बत्तखों के लिए। उसके आसपास देखा झोपड़ी के अंदर देखा। वहाँ पर कोई नहीं था। सभी जगह अच्छे से देखने के बाद राहुल थक कर थोड़ी देर कुर्सी पर शांत बैठ गया।
वहीं नीचे स्टोर रूम में बहुत सा पुराना सामान पड़ा था। बहुत सी अलमारियां, बक्से, पुराना सोफा, पुराना घर का सामान पड़ा था। सब कुछ अच्छे से ढ़का हुआ था। अनुज ने हर एक कोने को ठीक से देखा। बड़े सामान पर ढ़के कपड़े को उठाकर भी देखा पर वहां कुछ भी ऐसा नहीं था जिस पर शक किया जा सकता था। 
अरुणा जी ऊपर कमरों में ढूंढ रही थी। जिनमें एक कमरा स्नेहा का था।  स्नेहा का कमरा साफ सुथरा और ठीक से व्यवस्थित था।  एक तरफ अलमारी, ड्रेसिंग टेबल जिस पर बहुत सा मेकअप का सामान रखा था। खिड़की खुली थी उस पर पर्दा लगा हुआ था अरुणा जी ने पर्दा हटा कर बाहर देखा, कोई नहीं था वहां। फिर उन्होंने बाथरूम का गेट खोल कर वहां भी चेक किया। वहां पर भी कोई नहीं था। वह वापस आ गई और दूसरे कमरे में चली गई।
दूसरा कमरा स्नेहा के भाई भाभी का था। दरवाजे के बिल्कुल सामने एक डबल बेड रखा था। बेड के पीछे दीवार पर एक बड़ी सी दोनों की शादी की तस्वीर लगी थी। उस कमरे की खिड़कियां बंद थी। अलमारी के पीछे, बेड के नीचे भी देखा वहां भी कुछ नहीं था। बाथरूम भी चेक किया पर कहीं कुछ नहीं मिला।
वही अखिलेश जी ने पूरा हॉल ढूंढ लिया था। कहीं भी किसी को भी कुछ नहीं मिला था। हॉल के एक तरफ से ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां बनी थी  सभी कमरों के दरवाजे भी हॉल में खुलते थे।  हॉल के बाहर की तरफ एक बालकनी थी जिस पर पर्दे लगे थे। हॉल के बीचों बीच सोफे और सेंटर टेबल रखी थी। दीवारों पर सुंदर पेंटिंग्स लगी थी। हॉल के कौनो में सजावटी पौधों के गमले रखे थे।
गीता जी बालकनी में ढूंढ रही थी पर बालकनी में भी फूलों के गमले और सजावटी पौधों के अलावा कुछ नहीं था। तभी अचानक से बालकनी के कोने में बैठी काली बिल्ली  गीता जी के ऊपर कूदी और गीता जी की जोर से चीख निकल गई।
सभी ढूंढने में लगे हुए थे कि गीता जी की चीख सुनकर दौड़ते हुए बालकनी में पहुंच गए।
वहीं पेंटिंग में बैठी स्नेहा, पेंटिंग में ही बने एक सेब के पेड़ से सेब तोड़ कर खा रही थी।  और उन सभी को परेशान देखकर खुश हो रही थी। 
सभी ने बिल्ली को देखकर चैन की सांस ली।
"जीजी बिल्ली थी...मुझे लगा कहीं स्नेहा तो नहीँ आ गई। कहीं उसे सब पता तो नहीं चल गया। हमारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा।" अरुणा जी ने राहत की साँस लेते हुए कहा।
"ऐसे कैसे भाभी पानी फिरने देंगे। इतनी प्लानिंग इसलिए थोड़ी की थी। आप चिंता ना करो। कुछ नहीं होगा।" गीता जी ने भी उन्हें समझाते हुए कहा।
"और क्या… बुआ इतनी जल्दी थोड़ी सबकुछ बर्बाद होने देगी।" राहुल ने कहा।
"प्लानिंग में माँ और छोटी मामी का कौन हाथ पकड़ सकता हैं। वैसे भी स्नेहा घर आई होती तो चौकीदार बताता तो सही। पुराना थोड़ी ही है जो उनका वफादार था। बैठी होगी अभी भी अपने परिवार को रोते वहीं शमशान में।" अनुज ने हँसते हुए कहा।
अनुज की बात सुनकर सभी हँसने लगे। और हँसते हुए वापस हॉल की ओर चल पड़े। जँहा आगे की प्लानिंग के बारे में बात कर रहे थे।
उनकी बातें सुनकर ही स्नेहा को बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा था। आगे की प्लानिंग क्या होगी यही सुनने के लिये ही स्नेहा वही छुपी रही।
बाहर अंकल को स्नेहा की चिंता हो रही थी पर इस वक़्त इंतजार के अलावा कुछ और कर भी नहीं सकते थे। साथ ही उन्हें किसी की नजर में आने सभी बचना था। बस हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि अंदर स्नेहा सुरक्षित हो। 
अंदर हॉल में सभी आगे के प्लान के बारे में बातें कर रहे थे।
"पहले स्नेहा का कुछ इलाज करना पड़ेगा। वरना संपत्ति का स भी नही देखने को मिलेगा। देखा नही सबने कैसे बोली थी, मुखाग्नि मैं दूँगी। हुह… बडी आई  सारी प्रॉपर्टी की वारिस।" गीता जी ने मुँह बनाकर कहा।
"हाँ जीजी… बिल्कुल ठीक बोल रही हो। बचपन से ही देखा नहीं आपने कितनी तेज़ हैं। मजाल के कोई उसकी एक कील तो ले ले। उसे पता चला तो राम ही जाने क्या बवंडर उठाएगी।" अरुणा जी ने थोड़ी टेंशन में कहा।
"क्या माँऽ आप भी कैसी बात करते हो, आज की हालत देखी थी बेचारी की। जब तक उसे कुछ समझ आएगा तब तक सब कुछ हमारी मुट्ठी में होगा।" राहुल ने हँसकर कहा।
"हाँ भइया… अब बस बड़े मामाजी की वसीयत खुलने का इंतजार है और फिर सबकुछ कैसे अपने पास आएगा उस बारे में बात करेंगे।" अनुज ने कहा।
"वसीयत कब खुलेगी अनुज...!! बात हुई थी तुम्हारी वकील से।" बहुत देर से चुप बैठे अखिलेश जी ने पूछा।
"जी मामा जी… वकील बोला था कि तीन दिन बाद खुलेगी। पर एक बात कहूँ?" अनुज बोला।
"हाँ कहो क्या बात हैं।" अखिलेश जी ने कहा।
" मामा जी वकील कुछ ज्यादा ही चालाक है। जब सब कुछ हो रहा था,तब उसकी नजरें हम सभी के ऊपर थी। उसको शायद शक हो गया है।" अनुज आगाह करते हुए कहा।
" एक काम करो, उस वकील पर नजर रखो…! कहीं लास्ट मोमेंट पर आकर हमारे सारे प्लान में गड़बड़ी ना कर दे।"अखिलेश जी ने कहा। 
"जी मामा जी...!! मैंने अपने एक आदमी को उस वकील के पीछे लगा दिया है। वह वकील की हर हरकत पर नजर रखेगा और उसकी पल-पल की खबर हमें देता रहेगा।" अनुज ने कहा।
" अच्छा किया अनुज और एक बात बताओ राहुल तुम क्या कर रहे हो?" अखिलेश जी ने राहुल से पूछा।
 "जी... जी पापा आप कुछ कह रहे थे।" राहुल ने कहा।
"तुमनें पता किया स्नेहा अभी तक क्यों नहीं आई?  वही श्मशान में ही है या कहीं और चली गई है? चौकीदार को कहा था... कि कोई आए तो जितनी जल्दी हो सके अंदर बताएं।" अखिलेश ने राहुल से पूछा।
"जी पापा... चौकीदार से  बोल दिया था कुछ भी हो... कोई भी आये तो  वह सबसे पहले हमें बताएगा। यहां तक कि स्नेहा भी आये तो  भी पहले हमें बताएं और उसे यह भी बोल दिया है की कोई पूछे तो यही बताएं कि पुराना चौकीदार बीमार है। तो उसकी जगह थोड़े दिन वही आएगा।" राहुल ने जवाब दिया।
 "ठीक है अब सब आराम करो जा के।" अखिलेश जी ने कहा।
सभी अपने अपने कमरे में आराम करने चले गये।
स्नेहा मन में ही बडबडाइ और सिर पर हाथ रखकर बोली, "अब इस पेंटिंग से बाहर कैसे निकलूँगी?" 
उस रहस्यमय आवाज ने आदेशात्मक लहजे में कहा, "अपना दायां पग बाहर रखो!"
स्नेहा ने वैसा ही किया। बाहर पैर रखते ही दीवार से फर्श तक सीढ़ियां थी जिनसे होते हुए स्नेहा वापस हॉल में आ गई। स्नेहा के वापस आते ही सीढ़ियां गायब हो गई। 
आवाज ने कहा, "बिना देर किए तुरंत बाहर निकलो।"
आदेश सुनते ही स्नेहा तुरंत पेड़ से उतरकर बाहर आ गई। बूढ़े अंकल वही टेंशन में घूम रहे थे।
"कितनी देर लगा दी बेटा…! तुम ठीक तो हो ना। चोट तो नहीं लगी।" अंकल ने  घबराकर पूछा।
"मै ठीक हूँ अंकल…! आप टेंशन मत करो। अब मैं अंदर जा रही हूँ। आप भी घर जाओ और रेस्ट करो। कोई भी प्रॉब्लम होगी तो आपको फोन कर लूँगी… ठीक है ना।" स्नेह ने कहा।
"ध्यान रखना अपना… मैं चलता हुँ।" बूढ़े अंकल ने कहा और अपना  फ़ोन नंबर देकर  चले गए।
स्नेहा ने एक लंबी सांस ली और अंदर चल दी। अंदर जाते समय चौकीदार ने उसे रोक दिया और पूछा, "आपको किससे मिलना है?"
  स्नेहा ने कहा, " यह मेरा ही घर है। आप कौन हैं...? और जो चौकीदार अंकल यहां रहते थे वह कहां गए?"
  चौकीदार ने जवाब दिया, "वह मेरे चाचा है, वह बीमार हो गए हैं तो कुछ दिन उनकी जगह मैं ही आऊंगा।"
 स्नेहा ने पूछा, "अब मैं अंदर जा सकती हूं या अभी भी कोई सवाल जवाब बाकी है।"
 चौकीदार ने कहा, "आप थोड़ा इंतजार कर लीजिए । मैं अभी पूछ कर बता देता हूं।" और वह अपने केबिन की तरफ चला गया जहां से उसने अंदर फोन लगाया और कुछ बातें की। फिर फोन रखकर वापस आया और उसे स्नेहा से कहा, "आप जा सकती हैं। मेरी बात हो गई है, उन्होंने कहा कि आपको अंदर भेज दू।"
स्नेहा को इस सब से बहुत तेज गुस्सा आ रहा था पर कर क्या सकती थी। फिलहाल तो उसे केवल अपने परिवार के हत्यारे को ढूंढना था। तो वह चुपचाप घर के अंदर चली गई।
 घर बहुत ही सुंदर था। सफेद संगमरमर का बना हुआ घर, जिसके चारों तरफ बड़े फलदार पेड़ लगे थे। रंग बिरंगे फूलों के पौधे जिनमें उनके पसंदीदा गुलाब, रजनीगंधा, चमेली, रातरानी और भी पता नहीं कौन-कौन से थे। पर आज सब उदास लग रहे थे, क्योंकि उनकी रौनक जिनसे थी वही आज इस घर में नहीं थे। पूरे दिन चहकने वाली चिड़िया भी आज शांत थी। पूरे दिन जिन पक्षियों का जमावड़ा लगा रहता था, आज वह भी शांत रहकर अपना दुख व्यक्त कर रहे थे।
घर क्या था कोठी थी। महल जैसी आलीशान दो मंजिला कोठी थी। जितनी शानदार बाहर से थी,उतनी ही खूबसूरत वह कोठी अंदर से भी थी। बड़ा सा हॉल खूबसूरत इंटीरियर, एंटीक शो पीस और बहुत ही खूबसूरत पेंटिंग्स जो देखने पर ऐसी लगती थी मानो अभी बोल पड़ेगी। मैटेलिक ग्रे कलर की दीवारें, वाइट सोफे, क्लासिक कांच का सेंटर टेबल। 
स्नेहा को अपने परिवार की बहुत याद आ रही थी। जहां पूरे घर में उनकी यादें बिखरी पड़ी थी। सोफे पर बैठकर की गई पापा के साथ बातें, पूरे हॉल में भाई के साथ की गई धमा-चौकड़ी, किचन में मम्मी को परेशान करना या फिर भाभी का गृह प्रवेश हर चीज उसे याद आ रही थी। जब पहली बार राधु जब घर आई थी... कितना सुंदर सजाया था। कितने खुश रहना था यह सोचते सोचते उसकी आंखों में आंसू आ गए।
 इतने में सभी परिवार वाले बाहर हॉल में इकट्ठा हो गए। सभी स्नेहा को झूठी सहानुभूति जता रहे थे। बुआ और चाची तो उसे देख कर स्नेहा को गले लगा कर रोने ही लगी। 
चाचा ने उन्हें डांट कर चुप करवाया और कहा,  "बंद करो यह रोना-धोना। जो बचा है उसका ध्यान रखो। ध्यान रखो स्नेहा का... सुबह से कुछ खाया पिया भी नहीं उसने।  उसे कुछ खिलाओ और आराम करने दो।"
स्नेहा ने खाने से मना कर दिया पर सबने उसे रो-धोकर थोड़ा कुछ खाने पर मजबूर कर दिया। खाना खाकर वह अपने कमरे में आराम करने चली गई और सभी चाचा के कमरे में आगे की प्लानिंग करने इकट्ठे हो गए। सभी स्नेहा को रास्ते से हटाने का प्लान कर रहे थे।सोच रहे थे कि सबसे बड़ी मुसीबत है यह।
स्नेहा अपने कमरे में टहल रही थी। सोच रही थी, "कैसे लोग हैं बस प्रोपर्टी चाहिए? कैसे मगरमच्छ के आँसू बहा रहे थे। हुह बड़े आये चिंता करने वाले। परिवार के ना होने का फायदा उठाने की सोच रहे हैं मैं देखती हूँ कैसे मिलती है प्रोपर्टी।"
वही अखिलेश जी के  कमरे में सब इकट्ठा होकर स्नेहा का क्या करना है वही सोच रहे थे।  
 गीता जी ने कहा, "एक काम करते है कि वकील को अपने साथ मिला लेते है ताकि हमें प्रॉपर्टी आराम से मिल जाए।" 
 अरुणा जी ने कहा, "या फिर उसको गायब करवा देते हैं। अपने इतने लोग कोई ना कोई ये काम तो कर ही देगा।" फिर राहुल की तरफ देखते हुए  पूछा,"कोई है जो इतनी सफाई से स्नेहा को गायब करवा दे ताकि किसी को पता भी ना चले।" 
राहुल ने कहा, "मां…! ऐसा तो कोई नहीं हैं जानकारी में। क्योंकि सबसे बड़ी बात तो ये है कि किसी को पता ना चल जाए। फिर राहुल ने अनुज से कहा, "अनुज तुम क्या कहते हो?"
 अनुज जो काफी देर से कुछ सोच रहा था राहुल की बात सुनकर एकदम से चौक गया और कहा,  "भैया ऐसा कुछ करते है, जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे। उसके लिए स्लो प्वाइजन जैसा कुछ ट्राई करें। या फिर कुछ ऐसा ढूंढते हैं। जिससे पुलिस का शक हम पर ना आए क्योंकि इस समय स्नेहा को कुछ हुआ तो सारा शक हम ही पर आएगा।  पूरी प्रॉपर्टी का जो सवाल है।" 
 "चुप करो... तुम सब.. फालतू के प्लान बना रहे हो। सबसे सही यह रहेगा कि पहले वसीयत सुनें उसके बाद स्नेहा को कैसे ठिकाने लगाना है? उसका पूरा प्लान मेरे पास है। कब, क्या, और कैसे करना है? किस को क्या करना है, सब कुछ समय आने पर अपने आप सबको पता चल जाएगा। तब तक शांत रहो और ऐसा कुछ मत करना, जिससे हमारा बना बनाया खेल चौपट हो जाए।" 
वही स्नेहा अपने कमरे में घूमती हुई उस रहस्यमई आवाज के बारे में सोच रही थी। सोच रही थी,  "आखिर है कौन? मुझसे चाहता क्या है?? क्यों मेरी मदद कर रहा है और उसे कैसे पता... कि मेरे मां पापा का कातिल कौन है.. ? आखिर है क्या चीज़…?? अब 12:00 बजे बुलाया है, तो जाना ही पड़ेगा।  यह भी तो देखना है कि वह कर क्या सकता है। एक बार उसे देख लूं  फिर एक इस चाचा, बुआ एंड पार्टी  से निपट लूंगी। क्योंकि हो ना हो इस पूरे कार्यक्रम में सबसे बड़ा हाथ चाचा एंड पार्टी का ही है। पहले से मुझे यह लोग पसंद नहीं थे और अब तो सर पर ही आकर बैठ गए।"
 थक कर स्नेहा अपने बेड पर बैठ गई और कब क्या करना है और कातिलों का पता कैसे लगाना है। लेट कर उसी बारे में सोच रही थी  सोचते सोचते उसकी आंख लग गई। तब उसने रात में सपना देखा कि एक काला साया उसकी तरफ बढ़ रहा है। उसे मारने के इरादे के साथ। उस साये ने  पास आकर तकिया उठा लिया और स्नेहा के मुंह पर रखकर दबा दिया। स्नेहा कुछ नहीं कर पा रही थी, उसकी धड़कन बढ़ ही गई थी और पसीने आ रहे थे। अचानक झटके से उसकी आंख खुल गई घड़ी में 11:30 बज रहे थे। कितना डरावना सपना था ना वह। पर अब सपने से डरने का नहीं बल्कि श्मशान में जाने का समय था। स्नेहा ने मन ही मन संकल्प किया  कि आज उस रहस्यमय आवाज से इस सबका कारण जान कर ही रहूंगी। ऐसा सोचकर स्नेहा घर से निकल गई।  और घर से श्मशान जाने को निकालने पर बाहर एक ऑटो इंतजार करते मिला।
"तुम स्नेहा हो ना…! बाबा ने तुम्हें सही सलामत  उनके पास पहुँचाने का आदेश दिया है।" ऑटो चालक ने कहा।
स्नेहा के बैठते ही ऑटो हवा से बात करते हुए श्मशान की ओर चल दिया…….
 
क्रमशः...

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